मलय रॉयचौधुरी की कविताएँ
मलय रॉयचौधुरी की कविताएँ
. तितली प्रजन्म की नारी तुम चित्रांगदा देव
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रवीन्द्रनाथ, यह लेकिन ठीक नहीं हो रहा है |
चित्रांगदा कह रही थी आप प्रतिदिन
उसे रोक लेते हैं, आपको साबुन
लगाने के लिए, सुना है बूढ़े हो गए हैं इसलिए
अकेले स्नानघर जाने में आप
डरते हैं, और हाथ भी नहीं पहुँचता है
देह के सर्वत्र, बालों में शैम्पू वगैरह करना--
पोशाक खोलते ही, आसंग-उन्मुख नीली
तितलियाँ उडती हैं उसके ही शरीर से
और वो गाती हैं आपका लिखा हुआ गीत !
यह आप क्या कर रहे हैं ? आपकी
प्रेमिकाएँ बूढ़ी जर्जर हैं तो क्यूँ
मेरी प्रेमिका को फँसाना चाह रहे हैं !
2. खसखस का फूल
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पर्वत का तुम्हारे गुलाबी रंग अवंतिका
शरीर तुम्हारा हरे रंग से ढँका अवंतिका
खरोंचता हूँ निकलता है गोंद अवंतिका
चाटने देती हो, नशा होता है अवंतिका
हो दर्दनाक गिराती हो पेट अवंतिका
3. अन्तरटॉनिक
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बीड़ी फूँकती हो अवंतिका
चुम्बन में श्रम का स्वाद पाता हूँ
देशी पीती हो अवंतिका
श्वास में नींद की गंध पाता हूँ
गुटखा खाती हो अवंतिका
जीभ पर रक्त का स्पर्श पाता हूँ
जुलूस में जाती हो अवंतिका
पसीने में तुम्हारे दिवास्वप्न पाता हूँ |
4. उत्सव
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तुम क्या कभी श्मशान गयी हो अवंतिका ? क्या बताऊं तुम्हें !
ओह वह कैसा उत्सव है, कैसा आनंद, न देखो तो समझ नहीं पाओगी --
पञ्चांग में नहीं ढूँढ पाओगी ऐसा उत्सव है यह | कॉफ़ी की घूँट लेता हूँ |
अग्नि को घेर जींस-धोती-पतलून-बनियान व्यस्त हैं अविराम
मद्धिम अग्नि कर रही है तेज नृत्य आनंदित होकर, धुंए का वाद्ययंत्र
सुनकर जो लोग अश्रुपूरित आँखों से शामिल होने आए हैं उनकी भी मौज
अंततः शेयर बाज़ार में क्या चढ़ा क्या गिरा, फिर टैक्सी
पकड़ सामान्य निरामिष खरीदारी पुरोहित की दी हुई सूची अनुसार --
चलना श्मशान काँधे पर सबसे सस्ते पलंग पर सोकर लिपस्टिक लगाकर ...
ले जायेंगे एक दिन सभी प्रेमी मिल काँधे के ऊपर डार्लिंग ...
5. प्रियंका बरुआ
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प्रियंका बरुआ तुम्हारे
होठों का महीन उजाला
मुझे दो न जरा सा
विद्युत् नहीं है
कई साल हुए
मेरी उँगलियों में हाथों में
तुम्हारी उस हँसी से
जरा सा बुझा दोगी क्या
मेरे जलते होठों को
जब भी कहोगी तुम
कविता की कॉपी से
निकालकर दे दूँगा तुम्हें
सुना है आग भी है
तुम्हारी देह के किसी खाँचे में
माँगते हुए शर्म महसूस करता हूँ
जुगनू का हरा
प्रकाश हो, तो भी चलेगा
दो न जरा सा
होंठ जो सूख गया है
प्रियंका बरुआ देखो
कविता लिखना भी हुआ बंद
तुम्हारे कभी के दिए हुए
अंधकार में अब भी
डूब जाती है हाथों की उँगलियाँ
तुम्हारी उस हँसी से
जरा सा बुझा दोगी क्या
मेरे जलते होठों को
जब भी कहोगी तुम
कविता की कॉपी से
निकालकर दे दूँगा तुम्हें
6. विज्ञानसम्मत कीर्ति
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पंखा टांगने के उस खाली हुक से
गले में नायलोन की रस्सी बाँध लटक जाओ
कपाट सटाकर दरवाजे के पीछे
ऊँची तान पर रेडिओ चलाकर झटपट
साड़ी साया कमीज खोलकर टूल के उपर
खड़े होकर गले में फाँसी की रस्सी पहन लेना
सारी रात अंधकार में अकेली लटकती रहना
आँखें खुलीं जीभ बाहर निकला हुआ
दोनों ओर बेहोश दो हाथ और स्तन
जमी हुई षोडशी के शून्य पाँव के नीचे
पृथ्वी की छुआछूत से परे जहाँ
बहुत पुरुषों के होठों ने प्यार किया है
उस शरीर को छूने में डरेंगे आज वो लोग
लटको, लाश उतारने के लिए हूँ मैं |
7. दलाल
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यह क्या कुलनारी ! तुम जहाज घाट पर देह बेचने आयी हो
लूँगी पहना हुआ पानखोर दलाल नहीं रखा ?
सफ़ेदपोश कवि शरीर को छलनी कर देगा
शंख और लोहे की चूड़ियाँ उतार दोनों हाथों से खींच लेंगे तुम्हें लॉरी पर
लॉक अप में निर्वस्त्र मध्यरात्रि.......उस समय गाना तुम रवीन्द्र संगीत
छी कुलपुत्री ! तुम सबको करने देती हो प्यार
जिस-तिस के साथ जहाँ तहाँ सो जाती हो
चारोंओर रंगीन आँखों वाले मंजे हुए ठग सब पर नजर रखे हुए हैं, याद रखना
मैं तो स्ट्रेचरवाही हूँ कुछ भी नहीं कर सकूँगा
शायद टिफिन डब्बे में ले आऊँगा रोटी और आलू-जीरे का भुजिया
गाना सुनाने के बीच झुक-झुक कर पैसा उठाऊँगा
सुबह होते ही गंगा के किनारे तुम खड़ी रहकर उल्टी करना
अस्पताल में मिलेगा बेडपैन ग्लूकोज बोतल में पानी
गंदे बिस्तर के पास सोया हुआ तन्द्रागत कुत्ता |
8. वज्रमुर्ख का तर्क
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आज शुक्रवार है | वेतन मिला है | शायद शरतकाल की पूर्णिमा है |
महीन मेघ के मध्य खेल रही है ज्योत्स्ना | मध्यरात्रि | सुनसान सड़क |
जरा सी ताड़ी चढ़ाई है | गुनगुना रहा हूँ अतुलप्रसाद |
कहीं कुछ नहीं है, अचानक आवारा कुत्तों का दल
भौंकने लगता है | पीछा करता है | दौड़ता रहता हूँ असहाय |
नहीं समझ पाया पहले | राजपथ आकर होंश आता है |
वेतन गिर गया है कहीं हाथ से | कैसे लौटूँगा घर ?
कोई भी तो विश्वास नहीं करेगा | सोचेंगे खेला होगा रेस,
गया होगा वेश्या के घर, दोस्तों के साथ उड़ाया होगा |
बंधु - बांधव कोई नहीं है | रेस भी नहीं खेला कब से |
दूसरी स्त्रियों के खुले वक्ष पर अंतिम बार हाथ कब लगाया था
भूल गया हूँ | नहीं जानता विश्वास नहीं करता कोई भी क्यूँ |
मुझे तो लगता रहता है, जो नहीं किया वही किया है शायद |
जो नहीं कहा, मैंने वही कहा | फिर इस पूर्णिमा का मतलब क्या है ?
क्यूँ इस वेतन का मिलना ? क्यूँ गाना ? क्यूँ ताड़ी ?
फिर घुसना पड़ेगा बेहद गंदी गली में | निर्घात कुत्ते
गंध सूंघकर जान जाएँगे | घेर लेंगे चारोंओर से |
जो होना है हो जाए | आज साला इस पार या उस पार |
9. धनतंत्र का क्रमविकास
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कल रात बगल से कब उठ गयी
चुपचाप अलमारी तोड़कर कौन सा एसिड
गटागट पीकर मर रही हो अब
उपजिह्वा गल चुकी है दोनों गालों में है छेद
मसूरे और दाँत बहते हुए दिख रहे हैं चिपचिपे तरल में
गाढ़ा झाग, घुटने में हो रहा है ऐंठन से दर्द
बाल अस्तव्यस्त, बनारसी साड़ी साया
खून से लथपथ, मुठ्ठी में कजरौटा
सोले से बना मुकुट रक्त से सना रखा है एक ओर
कैसे कर पायी सहन, नहीं जान पाया
नहीं सुन पाया कोई दबी हुई चीत्कार
तो क्यूँ सहमति दी थी गर्दन हिलाकर
मैं चाहता हूँ जैसे भी हो, तुम बच जाओ
समग्र जीवन रहो कथाहीन होकर
10. स्वच्छ दीवार
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वह दीवार कैसी दिखती है
उसे नहीं पता
दीवार जिसकी है वह भी कभी
नहीं जान पायी
वह केवल जानती है कि है
दीवार
बचा-बचा कर रखा है
उस युवक के लिए
जिसे वह तोड़ने देगी
युवा लोग फिर भी पसीने से तर हो जाते हैं
एक स्वच्छ पतली
दीवार तोड़ते हुए
हजारों-हजार सालों से
तोड़ी जा रही है दीवार
रक्त के साथ रस से निर्मित
वह दीवार
जिसकी टूटती है उसे गर्व नहीं होता
जो तोड़ता है उसका भी
अहंभाव नाचता है पसीने में
रस का नागर होने का ख़िताब मिला है
प्रेमी को
प्रेमिका दिखाएगी चादर में रक्त लगाकर
अध्यवसाय में समय के साथ लड़कर
दीवार टूटने का वह आनंद
दोनों जन का
जिसने तोड़ा और जिसका टूटा
सेलोफेन सा महीन
दीवार न तोड़कर मनुष्य
जन्म नहीं लेगा
इसलिए
सभी दीवारों को
स्वच्छ मांस से निर्मित
सेलोफेन सा हो या
लोहे की ईंट की अदृश्य
सीमारेखा की
प्रेम के पसीने में भिगोकर
तोड़ देना है जरूरी
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